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Wednesday 11 May 2016

Interesting facts about Kohinoor Diamond

Kohinoor diamond यह हीरा दुनिया के सबसे महंगा और ऐतिहासिक हीरा है. यह हीरा आज तक पुरुषों के लिए अशुभ और मृत्यु का प्रतीक बना रहा है, जबकि महिलाओं के लिए खुशी और कामयाबी का कारण. Kohinoor diamond को दुनिया के सबसे प्रसिद्ध, कीमती और अपनी तरह का सबसे बड़ा हीरा माना जाता है. यह हीरा चार हजार साल पहले भारत में Discover हुआ था. इसके बाद यह हीरा विभिन्न राजाओं, शासकों और हाकिमों से होता हुआ आजकल इंग्लैंड की Queen Elizabeth के ताज में जलवा अफ़रोज़ है.
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इंग्लैंड वालों ने इस हीरे को बेहतर स्थिति में लाने और उसकी चमक बढ़ाने के लिए तराश कर कुछ कम कर दिया है. अब उसकी वर्तमान स्थिति 105 कैरेट और वजन 21 ग्राम है जबकि इसका वास्तविक वजन 37 ग्राम था. बहरहाल इसमें कोई शक नहीं कि ये अब भी दुनिया का सबसे कीमती हीरा है.
अन्य हीरे की तरह कोहिनूर के साथ भी कई परम्पराएं और कहानियां जुड़ी हैं. कहा जाता है कि यह हीरा पुरुषों के लिए अशुभ और मृत्यु का प्रतीक बना रहा है जबकि महिलाओं के लिए खुशहाली का कारण बना है.

Kohinoor diamond भारत के विभिन्न हिन्दू और मुसलमान शासकों से होता हुआ 1526 में मुगल बादशाह बाबर के हाथ उस समय आया जब उसने इब्राहीम लोधी को हराकर दिल्ली पर कब्जा कर लिया था. बाबर के याददाश्त पर मुश्तमिल किताब ” बाबर नामा (Baburnama)” में भी इस हीरे का उल्लेख है. उक्त पुस्तक में बाबर ने कोहिनूर हीरे के बारे में लिखा है: ”यह इतना कीमती हीरा है कि इसके बदले मिलने वाली राशि से दुनिया भर के सभी लोगों को दो दिन का खाना खिलाया जा सकता है.”
बाबर के बाद यह हीरा हुमायूं के पास पहुंचा. अकबर ने उसे अपने पास नहीं रखा. उसके बाद अकबर के पोते शाहजहाँ ने उसे खजाने की तिजोरी से निकलवा कर अपने पास रखा लिया था. उसने बाद में इस हीरे से ‘तख्ते ताउस’ को सजा दिया था. शाहजहाँ के बाद उसका बेटा औरंगजेब अलमगीर राजा बना. उसने अपने पिता शाहजहां को आगरा में कैद किया था और कहा जाता है कि औरंगजेब ने शाहजहाँ के जेल की खिड़की पर Kohinoor diamond को इस कोण से रखवा दिया था कि Taj Mahal का प्रतिबिंब इसमें दिखता रहे.
मज़े की बात यह है कि इस हीरे को ‘कोहेनूर’ नाम नादिर शाह ने दिया था. उसके बाद से आज तक इसे कोहेनूर कहा जाता है. 1739 में जब नादिर शाह ने आगरा और दिल्ली पर हमला किया तो वापसी पर तख्ते ताउस के साथ इस हीरे को भी ईरान ले गया था. जब नादिर शाह ने पहली बार इस हीरे को देखा तो अनायास ही बोल पड़ा था: “कोहेनूर” यानी प्रकाश का पहाड़!

Kohinoor diamond price कोहेनूर हीरे की कीमत

1739 से पहले इस पत्थर का कोई नाम नहीं था. इस सुन्दर और आकर्षक पत्थर की कीमत के बारे में एक और परंपरा भी प्रसिद्ध है. नादिर शाह की पत्नी ने कहा था ” यदि कोई शक्तिशाली आदमी एक पत्थर पश्चिम की ओर, एक पूर्व, एक दक्षिण और एक उत्तर की ओर पूरी ताकत से फेंके. पांचवां पत्थर पूरी ताकत से ऊपर की ओर उछाल दे … पत्थरों के बीच चारों ओर के घेरे में पांचवें पत्थर की ऊंचाई तक सोना और कीमती चीजों से भर जाए तो यह कोहेनूर हीरे की कीमत के बराबर होगा. ”
कहा जाता है कि कोहेनूर हीरे को नादिर शाह से छिपा कर रखा गया था. लेकिन मुगल बादशाह मोहम्मद शाह के किसी घर के भेदी ने नादिर शाह को सूचित कर दिया कि हीरा मोहम्मद शाह की पगड़ी में छिपा हुआ है. हीरे के बारे में खबर मिलते ही नादिर शाह इसे पाने के लिए बेचैन हो गया. काफी सोच विचार के बाद उसने एक समारोह का आयोजन किया और यह प्रसिद्ध कर दिया कि वो दिल्ली का सिंहासन मोहम्मद शाह को वापस करने का इरादा रखता है. समारोह के दौरान अचानक उसने मोहम्मद शाह से ‘पगड़ी बदल दोस्ती’ का ऐलान किया और अनुष्ठान के अनुसार अपनी पगड़ी उतारकर मोहम्मद शाह की तरफ बढ़ा और फिर अपनी पगड़ी उसके हवाले कर दिया. उत्तर में मोहम्मद शाह उसे अपनी पगड़ी देने से मना नहीं कर सका. समारोह समाप्त होने के बाद नादिर शाह अपने कमरे में गया और पगड़ी की गांठें खोलकर उसमें छिपा Kohinoor diamond बरामद कर लिया. हीरे की चमक से मानो कमरा जगमगा उठा. उसकी चमक दमक देखकर प्रशंसा शैली में अनायास उसकी जुबान से निकला था ”कोहेनूर”
1747 में नादिर शाह की हत्या के बाद कोहेनूर हीरा अफगानिस्तान के अहमदशाह अब्दाली के कब्जे में आ गया. 1830 में अपदस्थ शासक शाह शुजा ने किसी तरह वो हीरा प्राप्त किया और उसे अपने साथ लेकर काबुल से लाहौर पहुंच गया.
वह पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह से मिला और उसे हीरा देकर अनुरोध किया कि वो ईस्ट इंडिया (East India) के अंग्रेजों को किसी तरह तैयार करे कि वह अपनी शक्ति का उपयोग करके उससे छीना गया सत्ता वापस दिलाएं. महाराजा रणजीत सिंह ने कोहेनूर हीरा अपने पास रख लिया और 1839 में मरने से पहले उसने वसीयत की कि उसकी मौत के बाद वह हीरा उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) को दान कर दिया जाए. लेकिन वसीयत का पालन न हो सका.
1848 में पंजाब में अंग्रेजों का कब्जा हो गया और लाहौर के किले पर ब्रिटेन का झंडा लहराने लगा. लाहौर में जो शर्तें लगाई गई थीं, उनमें एक स्पष्ट शर्त यह थी कि कोहेनूर हीरा इंग्लैंड की रानी की सेवा में पेश किया जाएगा.
Kohinoor diamond को बड़ी सुरक्षा के साथ “H.M.S.Medea” नामक जहाज में इंग्लैंड पहुंचाया गया. रक्षा के विचार से इस हीरे कि ट्रांसफर की खबर अखबारों से छिपा कर रखा गया था. इतना गोपनीयता बरती गई थी कि जहाज के ट्रेजरी कार्यालय के प्रभारी और कैप्टन को भी अनजान रखा गया गया था. वह नहीं जानते थे कि लोहे बॉक्स में क्या ले जाया जा रहा है.
बहरहाल तमाम Security arrangements के बावजूद हीरा ले जाने वाले जहाज की वह यात्रा काफी संकटों से भरा साबित हुआ, अगरचे खतरे का प्रकार अलग था. जब वह जहाज मारीशस पहुंचा तो जहाज में हैजा की महामारी फैल गई. बंदरगाह वालों ने जहाज को वहां ठहरने की अनुमति नहीं दी. जहाज वाले आगामी यात्रा के लिए आवश्यक उपकरण, राशन आदि प्राप्त करना चाहते थे. लेकिन मॉरीशस के लोगों ने उनके खिलाफ जुलूस निकाला और मांग की कि जहाज बंदरगाह की सीमा में प्रवेश करने की कोशिश करे तो उस पर गोलियां बरसाई जाएं. मॉरीशस से रवाना होने के बाद जहाज सख्त तूफान में फंस गया. बहरहाल 16 अप्रैल 1850 को भारत से रवाना होने वाला जहाज लगभग 86 दिनों की यात्रा के बाद इंग्लैंड पहुंचा.
उस समय भारत के Governor General Lord Dahlias ने हीरा इंग्लैंड पहुंचने की खबर मिलते ही महाराजा रंजीत सिंह के विराजमान पुत्र दिलीप सिंह को लंदन रवाना कर दिया. उसने लंदन पहुंचकर कोहेनूर हीरा रानी Victoria को पेश किया. उसी साल यानी 1851 में कोहेनूर हीरे को हाईडपार में रखा गया गया ताकि जनता उसका दर्शन कर सकें. 1851 से अब तक कोहेनूर हीरा ब्रिटेन के कब्जे में है.

Where is Kohinoor diamond now?

इस समय कोहेनूर हिरा कहाँ है?
आजकल कोहेनूर हीरा Tower of London में मौजूद है और England की महारानी के इच्छा पर उसे वहाँ रखवाया गया है.

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